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जदयू में सुलग रही है चिंगारी, कभी भी भभक सकता है आक्रोश की आग

लाइव खगड़िया (मनीष कुमार) : जिले में हाल ही में संपन्न हुए जदयू के सांगठनिक चुनाव में जिला निर्वाचन पदाधिकारी की भूमिका निभाने वाले सुमित कुमार को पार्टी से निष्कासित किये जाने के बाद जिला जदयू की आंतरिक राजनीति गर्म हो गई है. उल्लेखनीय है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने उन्हें सांगठनिक चुनाव में पार्टी के निर्देशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए पार्टी से निष्कासित कर दिया है.

सुमित कुमार को WhatsApp मैसेज नहीं देखने की मिली सजा !

जिला निर्वाचन पदाधिकारी के रूप में पंचायत, प्रखंड सहित जिला स्तरीय चुनाव शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न करा लेने वाले सुमित कुमार का पार्टी से निष्कासन की खबर जिले के राजनीतिक बाजार में चर्चा का विषय बना हुआ है. बताया जाता है कि 11 सितंबर को जिलाध्यक्ष सहित अन्य पदों के लिए होने वाले मतदान के एक दिन पूर्व 10 सितंबर को रात्रि में राज्य निर्वाचन पदाधिकारी का एक पत्र जिला निर्वाचन पदाधिकारी के WhatsApp पर आया था. जिसमें अपरिहार्य कारणों का हवाला देते हुए चुनाव को स्थगित करने का निर्देश दिया गया था. जिला निर्वाचन पदाधिकारी की बातों पर यदि विश्वास करें तो चुनाव प्रक्रिया को संपन्न कराने की व्यस्ताओं के बीच वो Whatsapp पर राज्य निर्वाचन पदाधिकारी के उस पत्र को नहीं देख पाये थे और चुनाव वाले दिन जब उनकी नजर उक्त पत्र पर पड़ी तबतक चुनाव की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में था. लिहाजा उन्हें चुनाव की शेष प्रक्रियाएं भी पूर्ण करनी पड़ी.




शांतिपूर्ण रहा था चुनाव

स्थानीय जदयू विधायकों की मौजूदगी में 11 सितंबर को संपन्न हुआ जदयू का संगठनात्मक चुनाव शांतिपूर्ण रहा था. जिसमें पार्टी के विभिन्न प्रखंडों के अध्यक्ष, प्रखंड कार्यकारिणी व जिला परिषद के सदस्यों ने अपने-अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. बताया जाता है कि मतदान व मतगणना के दौरान की वीडियोग्राफी भी कराई गई थी. साथ ही उम्मीदवार व उनके प्रतिनिधियों की मौजूदगी में मतगणना का कार्य संपन्न हुआ था.

दिग्गजों को मात देते हुए बबलू मंडल ले उड़े थे जिलाध्यक्ष की कुर्सी

जदयू जिलाध्यक्ष के चुनाव में बबलू मंडल, विधान पार्षद सोनेलाल मेहता, साधना देवी, विक्रम यादव, शिवशंकर सुमन सहित कुल पांच कार्यकर्ताओं ने अपनी-अपनी नामजदगी का पर्चा भरा था और चुनाव में कुल 74 मतदाताओं ने अपने-अपने मत का प्रयोग किया था. जिसमें बबलू मंडल 69 मत प्राप्त कर एक बड़ी जीत अपने नाम कर गये थे.

जबकि विधान पार्षद सोनेलाल मेहता एवं पूर्व जिलाध्यक्ष साधना देवी मात्र एक-एक मत प्राप्त कर सके थे. वहीं विक्रम यादव तीन मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे और शिवशंकर सुमन को कोई भी मत नहीं मिला था.

जिलाध्यक्ष पद पर मनोनयन की रही थी परंपरा, पहली बार हुआ चुनाव

बताया जाता है कि जिले में अबतक जदयू अध्यक्ष के पद पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के द्वारा मनोनीत किये जाने की ही परंपरा रही थी. ऐसे में हाई कमान तक पहुंच और पैठ के बल पर ही जिलाध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने का सिलसिला रहा था. लेकिन इस बार यह परंपरा टूटी और स्थानीय कार्यकर्ताओं व उनके प्रतिनिधियों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत अपने जिलाध्यक्ष का चुनाव किया.




जदयू के लिए चुनाव को रद्द करना नहीं होगा आसान

‘सबका मान-सबका सम्मान’ सहित ‘सामाजिक न्याय’ का दंभ भरने वाली सत्तारूढ़ जदयू के थिंक टैंक के लिए किसी भी परिस्थिति में निर्वाचित अध्यक्ष को पदमुक्त करते हुए चुनाव को रद्द करना आसान नहीं होगा. यहां यह भी देखना दीगर होगा कि उठ रहे तमाम सवालों के बीच चुनावी मैदान में डटे रहे उम्मीदवारों की तरफ उंगलियां नहीं उठ रही. दूसरी तरफ चुनावी प्रक्रिया के तहत निर्वाचित उम्मीदवार के साथ अब स्थानीय कार्यकर्ताओं की भावनाएं भी जुड़ गई है. यदि किसी भी परिस्थिति में ऐसी स्थिति उभरी तो ना सिर्फ पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच गलत संदेश पहुंच सकता है बल्कि जिला जदयू में पनप रही आक्रोश की आग भभकने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. हलांकि मिल रही जानकारी के अनुसार जिला जदयू के अंदर शह व मात का खेल जारी है और किसी भी वक्त जिला जदयू की आंतरिक गुटबाजी एक बार फिर सतह पर दिखाई दे सकता है.

जदयू शीर्ष नेतृत्व के फैसले पर भी उठ रहे हैं कई सवाल

सूत्रों पर यदि विश्वास करें तो जदयू शीर्ष नेतृत्व की चाहत जिलाध्यक्ष पद पर निर्विरोध निर्वाचन का रहा था. जिसके लिए एक नाम पर चर्चाएं काफी तेज रही थी. लेकिन आम सहमति नहीं बनी और अंतिम वक्त तक कई उम्मीदवार जब चुनावी मैदान में ताल ठोकते रह गये तो चुनाव ही एक मात्र विकल्प शेष रह गया था. माना जा रहा है कि ऐसे में अंतिम वक्त में चुनाव स्थगित करने का पत्र जारी कर दिया गया. यदि इन बातों में थोड़ी भी सच्चाई है तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि यदि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को ही जिलाध्यक्ष पद के लिए नाम तय करना था तो फिर पार्टी के संगठनात्मक चुनाव के नाम पर स्थानीय कार्यकर्ताओं के भावनाओं के साथ खिलवाड़ क्यों किया गया ! साथ ही यदि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा जिला निर्वाचन पदाधिकारी पर लगाये गये आरोप में थोड़ी भी सच्चाई है तो फिर अहम जिम्मेवारियों के लिए पार्टी के चयन प्रक्रिया पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा होता है.


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